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Tejo Mahabhuta (तेजो महाभूत)

Dear learner, welcome to Sanskrit Gurukul. In this post, we will study Jala Mahabhuta(जल महाभूत). This topic is part of Padarth Vigyan’s notes, BAMS first-year course. In this third chapter, Dravya Nirupana, we have already covered the following topics:

Topic: Tejo Mahabhuta
Subject: Padarth Vigyan Part-I
Chapter: Dravya Nirupana
Course: BAMS First year

TEJO NIRUPANA

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tej mahabhuta

Tejas is one among Panchamahabhuta and it is the 3rd Karana dravya. The Tejo mahabhuta is formed from Vayu mahabhuta.

tejo mahabhuta

Teja possesses Rupa and Sparsha with Samavayi relation.

tejo mahabhuta

The Tejas possess the Sattva and Rajo guna predominantly.

It is hot in touch, white (Shukla) in color, removes the darkness, and is produced while Vayu’s motility is restricted. (the flame appears blue because of the presence of Prithvi particles in it). Tejas is responsible for Dravyapāka or Parivartan.

Types of Agni

It is of 2 types 

  • Nitya,
  • Anitya

Anitya further divided into 3 types, they are : 

  • Sharira: It is bright and present in Aditya loka. 
  • Indriya: It is Chakshurindriya, responsible for visual perception (Rupa grahana)
  • Vishaya.: It is of 4 types, they are :
    • Bhauma – Produced from earth (jwālāmukhi)
    • Divya – Produced from Divya srotas (Vidyut- electricity).
    • Udarya – Exists in the abdomen for digestion (Jatharāgri)
    • Akaraja – Exists in the metals at deep layers of the earth (Gold, etc.)

Qualities of Tejo Mahabhuta

It contains 11 qualities

  • Sparsha
  • Rupa (Vishesha guna)
  • Dravatwa (Naimittika guna)
  • Samskara (Due to Bhutan Pravesha)
  • Sankhya, 
  • Parimana,
  • Prithaktwa, 
  • Samyoga, 
  • Vithaga 
  • Paratwa,
  • Aparatwa (Received from Chakshurindrlya)

Gunas of Tejo: As per different Authors

According toGunas
Karikavali/Prashastapada1) Rupa, 2) Sparsha, 3) Samkhya, 4) Parimana, 5) Prilhaktwa, 6) Samyoga, 7) Vibhage, 8) Paratwa 9) Aparatwa, 10) Dravtva, 11) Samskara.
Vaisheshika1) Rupa, 2) Sparsha
Charaka1) Rupa. 2) Ushnata
Sushruta1) Sattva, 2) Rajas
BhavaprakashaTikshna

Classification of Tejas according to some other scholars (Shankar Mishra)

  • Sun produces flame and brightness.
  • Moon produces no flame but brightness.
  • Hot metals or Hदt water produces only hot but no brightness.
  • Hot and bright are absent in Netra.

Lakshanas of Tejas as per Yoga Darshana

  • Urdwagati (moves up)
  • Pachana (digestion)
  • Dagdha (burns)
  • Pavitrata (Sterilization)
  • Rabha (brightness)
  • Ksharana (to destroy)

9 types of Agni of Vaidika Kala

  • Sharirastha : Jatharāgni, Darshanāgni, Jnanāgni.
  • Parivārastha : Gāhapatyāgni, Dakshināgni, Ahvāgni.
  • Samāłhastha : Avasatyāgni, Saubhyāgni, Bahyāgni.

As per Charaka and Sushruta, the special qualities of Agni are Ushna, Tikshna, Sukshma, Laghu, Ruksha, Vishada, and Khara. The Rasa are Amla, Lavana, and Katu, it produces Daha, Paka, Prabha,: Prakash, Varna, etc., (C.Su. 26.11; S.Su. 4.12)

Taijasa Bhava

Chakshu (vision), Rupa (complexion, Varna (colors), Santapa (ushnata), Bhrājishnutā (brightness), Pakti (digestion), Krodha (anger), Tikshnata (sharpness or quick action) and Virat (boldness).

Tejas is important for Pakavastha of Dravya (Pilupaka of Vaisheshika Darshana and Pitharapaka of Nyaya Darshana).

Vidyut (Electricity)

Since Vedas the word Vidyut is used in the sense of Vishėsha-diptishali, it is the great source of Tejas. Nowadays it is widely used for different household work, medicine prepårations, examination of patients, diagnostic investigations, and merely for each and every activity.

Importance of Tejo mahabhuta in Ayurveda

  • In Tridosha the Pitta is nothing but a major form of Tejas only.
  • The Trayodasha Agni (13 types of Agni – Panchabhutagni + Sapta dhatwagni + Jatharāgni) in the body are mentioned for Āharaparinama (digestion and metabolism of food). It is a great source of Tejas only.
  • The normal temperature (Tejas) of the body is due to the balanced activities (Parinamakara bhava) of the body.
  • It is one among the Pancha mahabhuta and 3rd Karana dravya.
  • It is formed from Vayu mahabhuta.
  • It possesses Rupa and Sparsha with Samavayi karana.
  • It possesses Sattva and Rajo guna predominantly.
  • It is hot to the touch and white in color.
  • It is responsible to remove darkness.
  • It is responsible for Pākakriya in body and for Dhatu-parinama.
  • It contains 11 qualities – 1. Sparsha, 2. Rupa, 3. Dravatwa, 4. Samskara, 5. Sankhya, 6. Parimana, 7. Prithaktwa, 8. Samyoga, 9. Vibhaga, 10. Paratwa, 11. Aparatwa.
  • Nitya Tejas is Paramanurupa and Anitya Tejas is Karyarupa.
  • Anitya  Tejas divided into 1. Sharira, 2. Indriya ‘and 3. Vishaya.
  • Sharira Tejas present in Aditya loka, Indriya Tejas means Chakshurindriya, Vishaya Tejas of 4 types are
    • Bhaumagni -Tjas in earth
    • Divyāgni – Vidyut etc.
    • Udaryāgni – Present in abdomen for digestion of food.
    • Akarajāgni – It gives brightness to metals
  • Lakshanas of Tejas are Urdhwagati, Pachana, Dagdha, Pavitrata, Prabha, Ksharan, and Paka.
  • Tejo bhavas – Chakshurupa, Varna, Santapa, Bhrajishnuta, Tikshnata, Virat.
  • Tejaś is present in the body as Pitta and Trayodashagni for Parinamakara bhava in the body.

तेज निरुपण

tejo mahabhuta

तेजस पंचमहाभूतों में से एक है और यह तीसरा करण द्रव्य है। तेजो महाभूत वायु महाभूत से बना है।

tejo mahabhuta

तेज के पास रूप और स्पर्श का सामवयी संबंध है।

tejo mahabhuta

तेजस में मुख्य रूप से सत्त्व और रजो गुण होते हैं।

यह स्पर्श में गर्म, श्वेत (शुक्ल) रंग का होता है, अंधकार को दूर करता है और वायु की गति सीमित होने पर उत्पन्न होता है (पृथ्वी के कणों की उपस्थिति के कारण ज्वाला नीली दिखाई देती है)। तेजस द्रव्यपाक या परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है।

अग्नि के प्रकार

यह 2 प्रकार का होता है

  • नित्या,
  • अनित्य

अनित्य आगे 3 प्रकारों में विभाजित हैं, वे हैं:

  • शरीरा: यह उज्ज्वल है और आदित्य लोक में मौजूद है।
  • इंद्रिया: यह चाक्षु इंद्रिया है, जो दृश्य धारणा के लिए जिम्मेदार है (रूप ग्रहण)
  • विषय: यह 4 प्रकार का होता है, वे हैं :
    • भौम – पृथ्वी से उत्पन्न (ज्वालामुखी)
    • दिव्य – दिव्य श्रोत (विद्युत- विद्युत) से उत्पन्न।
    • उदरिय – पाचन के लिए उदर में विद्यमान (जठरागरी)
    • अकराज – धातुओं में पृथ्वी की गहरी परतों (सोना, आदि) में मौजूद है।

तेजो महाभूत के गुण

इसमें 11 गुण हैं

  • स्पर्श
  • रूप                                               विशेष गुण
  • द्रवत्व (नैमित्तिक गुण)
  • संस्कार (भूतनू प्रवेश के कारण)
  • सांख्य,
  • परिमाण,
  • पृथ्वीकत्व,
  • संयोग,
  • विथगा
  • परत्व,
  • अपरात्वा (चक्षुरिंद्रलय से प्राप्त)

तेजा के गुण: विभिन्न लेखकों के अनुसार

के अनुसारगुणों
करिकावली/प्रशस्तपद1) रूप, 2) स्पर्श, 3) सांख्य, 4) परिमाण, 5) पृथ्वीकत्व, 6) संयोग, 7) विथगा, 8) परत्व 9) अपरात्व, 10) द्रवत्व, 11) संस्कार।
वैशेषिक1) रूप, 2) स्पर्श
चरक1) रूप। 2) उष्णता
सुश्रुत:1) सत्त्व, 2) राजसी
भवप्रकाश:तीक्ष्ण:

कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार तेजस का वर्गीकरण (शंकर मिश्र)

  • सूर्य ज्वाला और चमक पैदा करता है।
  • चंद्रमा कोई ज्वाला नहीं बल्कि चमक पैदा करता है।
  • गर्म धातु या गर्म पानी केवल गर्म पैदा करता है लेकिन चमक नहीं।
  • नेत्रा में गर्म और चमकीला अनुपस्थित होता है।

योग दर्शन के अनुसार तेजस के लक्षण

  • उर्वगति (ऊपर जाती है) 
  • पचाना (पाचन) 
  • दग्धा (जलती है) 
  • पवित्र
  • राभा (चमक) 
  • क्षरण (नष्ट करने के लिए)

वैदिक काल की अग्नि के 9 प्रकार

  • शरिरस्थ: जठराग्नि, दर्शनाग्नि, ज्ञानाग्नि।
  • परिवार: गहपतियाग्नि, दक्षिणाग्नि, अहवाग्नि ।
  • समस्थान: अवसत्यग्नि, सौभाग्यग्नि, भाग्यग्नि।

आयुर्वेद में तेजो महाभूत का महत्व

  • त्रिदोष में पित्त और कुछ नहीं बल्कि तेजस का ही प्रमुख रूप है।
  • शरीर में त्रयोदश अग्नि (13 प्रकार की अग्नि – पंचभूतग्नि + सप्त धत्वाग्नि + जठराग्नि) का उल्लेख शरीरपरिनामा (भोजन का पाचन और चयापचय) के लिए किया जाता है। यह तेजस का ही बड़ा स्रोत है।
  • शरीर का सामान्य तापमान (तेजस) शरीर की संतुलित गतिविधियों (परिणामकार भव) के कारण होता है।

तेजो निरूपण का सारांश

  • यह पंच महाभूत और तीसरे करण द्रव्य में से एक है।
  • यह वायु महाभूत से बना है।
  • इसमें समवायी करण के साथ रूपा और स्पर्श हैं।
  • इसमें मुख्य रूप से सत्त्व और रजो गुण होते हैं।
  • यह स्पर्श में गर्म और रंग में सफेद होता है
  • अंधकार को दूर करता है।
  • यह शरीर में पाकक्रिया और धातु-परिणाम के लिए जिम्मेदार है।
  • इसमें 11 गुण होते हैं- 1. स्पर्श, 2. रूप, 3. द्रवत्व, 4. संस्कार, 5. सांख्य, 6. परिमाण, 7. पृथ्वीकत्व, 8. संयोग, 9. विभाग, 10. परत्व, 11. अपरत्वा।
  • नित्य तेजस परमाणु रुप हैं और अनित्य तेजस कार्यरूप हैं।
  • अनित्य तेजस 1. शरीरा, 2. इंद्रिया ‘और 3. विषय में विभाजित है।
  • आदित्य लोक में मौजूद शरीरा तेजस, इंद्रिया तेजस का अर्थ है चक्षुरिंद्रिया, और 4 प्रकार के विषय तेजस हैं
    • भौमाग्नि – पृथ्वी में तेजस
    • दिव्याग्नि – विद्युत आदि।
    • उदरायग्नि – भोजन के पाचन के लिए उदर में उपस्थित।
    • अकराजग्नि – यह धातुओं को चमक देता है
  • तेजस के लक्षण उर्ध्वगति, पचाना, दग्धा, पवित्रता, प्रभा, क्षरण और पाक हैं।
  • तेजो भाव – चाक्षुरूप, वर्ण, संतपा, भृजिष्नुता, तिक्ष्णता, विराट।
  • तेजस शरीर में पित्त और त्रयोदशग्नि के रूप में शरीर में परिणामकार भाव के लिए उपस्थित होता है।

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