Topic: Panchamahabhuta
Subject: Padarth Vigyan Part-I
Chapter: Drivya Nirupana
Course: BAMS First year
Dear learner, welcome to Sanskrit Gurukul. In this post, we will study Bhutas and Panchmahabhutas. This topic is part of Padarth Vigyan’s notes, BAMS first-year course. In this third chapter, Drivya Nirupana, we have already covered the following topics:
Related topics from the Ayurveda Darshana Nirupana Chapter
- Ayurveda Darshana nirupana- Padarth Vigyan- BAMS- Sanskrit Gurukul
- Classification of Darshana, Nyaya Darshana (दर्शन के प्रकार, न्याय दर्शन)
- Samkhya Darshana (सांख्य दर्शन)
- Yoga Darshana (योग दर्शन)
- Vaisesika Darshan (वैशेषिक दर्शन),
- Mimamsa Darshana (मीमांसा दर्शन),
- Vedanta Darshana (वेदान्त दर्शन)
- Charvaka Darshana (चार्वाक दर्शन)
- Jain Darshana (जैन दर्शन)
- BUDDHA DARSHANA (बौद्ध दर्शन)
- Ayurveda- a unique and independent school of Darshan
Bhuta and Panchamahabhuta
The collective form of the five essential elements is called Panchamahabhuta.
Bhuta is derived from
“Bhu” (Dhatu)
+
“Kta” (Pratyaya)
It means existence in the universe.
Prithvi, Ap, Tejas, Vayu, and Aakasha are Panchamahabhuta. Merely every substance is made up of the above 5 basic elements in different proportions, hence it is said that –
“सर्वं द्रव्यं पांचभौतिकत्वम्”
Among the 5 elements, one principle may be dominant and called by its name. Ex. –
- If Prithvi is predominant, it is called Parthiva dravya.
- If Ap (jala) is predominant, it is called Apya dravya, etc.
Bhutas are the microscopic and invisible structures whereas Maha-bhuta is the macroscopic and visible structures.
Ayurvedic science is based on the Tridosha theory and the Tridoshas are follows :
Relation of Dosha and PanchaMahabhuta
Dosha | Pancha bhuta |
---|---|
Vata | Vayu+ Aakasha |
Pitta | Agni+ Jala |
Kapha | Prithvi + Jala |
Relation of Rasa and PanchaMahabhuta
Name of Rasa | Component of Bhuta |
---|---|
Madhura rasa (sweet) | Prithvi + Jala |
Amla rasa (sour) | Agni + Prithvi |
Lavana rasa (salty ) | Jala + Tejas |
Katu rasa (bitter) | Agni + Vayu |
Tikta rasa | Vayu + Aakasha |
Kashaya rasa | Vayu + Prithvi |
Relation between Rasa and Dosha
- Madhura – Amla – Lavana rasa → Kaphakara and Vatahara(Aggravates Kapha dosha and Alleviates Vata dosha)
- Katu – Tikta – Kashaya rasa → Vatakara and Kaphahara (Alleviates Kapha dosha and aggravates vata Dosha)
- Kashaya-Tikta-Madhura rasa -→ Pittahara (Alleviates Pitta dosha)
- Amla- Lavana- Katu rasa → Pittakara ( Aggravates Pitta dosha)
The above relation proves that the Shad-rasaja objects of the creation and bodily Tridosha are Pănchabhautika and interlinked.
Hence in the depletion of bodily Panchabhautika components, the relevant components of creation are given either in the form of Ahara or Aushadha for the maintenance of equilibrium of health.
Origin of Panchamahabhuta
There are 2 theories related to the origin of Panchamahabhuta, they are as follows:
- Mula Prakriti → Mahat → Ahankara → Panchatanmatra → Panchamahabhuta. (Samkhya theory of evolution).
- Aakasha mahabhuta derived from Paramatma gives rise to the other four bhutas. Aakasha →Vayu → Tejas -→ Ap → Prithvi. Then different objects of the world are produced.
Role of Panchamahabhuta in Connection to the Development of Embryo
- Development of embryo based on Pancha mahabhuta
वायुर्विभजति – Initiate the cell division for growth.
तेजोपचति – Produces transformations in the tissue.
आपः क्लेदयति – Brings liquidity.
पृथिवी संहन्ति – Brings the consolidation state.
आकाशं विवर्धयति – Cause expansion by creating proper spaces among the tissue
- Gives the color complexion etc.
- Take part in the origination of some parts of the body.
- Produces Tridosha by which cɔmplete physiological changes cause the development of the fetus.
- Initiation of Apana vayu causes normal delivery.
Relation of Mahabhuta, Guna, and Indriya
Mahabhuta | Vishista Guna | Indriya |
---|---|---|
Aakasha | Shabda | Perceived by Shravanendriya (ears) |
Jala | Sparsha | Perceived by Sparshanendriya |
Agni | Rupa | Perceived by Chakshurindriya |
Jala | Rasa | Perceived by Rasanenanya |
Prithvi | Gandha | Perceived by Ghranendriya |
Note: The above Vishesha guna is present predominantly in the corresponding Bhuta and the other qualities are associated, the Vayu and Aakasha mahabhuta do not contain Rupa, Rasa, and Gandha hence these are not visualized, tasted, or smelled.
Parasparanupravesha of Panchamahabhuta
The Mahabhutas derived from Aakasha, while the derivation of the previous Bhuta gunas was also carried and associated with the Uttara bhuta. It is known as Bhutanupravesh.
Mahabhuta | Guna |
---|---|
Aakasha | Shabda only |
Vayu | Shabda-Sparsha |
Tejas | Shabda-Sparsha-Rupa |
Jala | Shabda-Sparsha-Rupa-Rasa |
Prithvi | Shabda-Sparsha-Rupa-Rasa-Gandha |
Note: “Sarvadravyam panchabhautikatvam” hence Padarth guna will be ½ and the rest of the 4 bhutas present each ⅛.
Relation of Pancha mahabhuta and Vishishta guna & Lakshana
Mahabhutas | Naisargika guna | Lakshana Vishishta |
---|---|---|
Aakasha | Shabda | Apratighatatva (non resistance) |
Vayu | Sparsha | Chalatwa (movement) |
Tejas | Rupa | Ushanatwa (Heat) |
Jala | Rasa | Dravatwa (liquidity) |
Prithvi | Gandha | Kharatwa (roughness) |
Relation between Pancha mahabhuta & Triguna
Mahabhuta | Triguna |
---|---|
Prithvi | Tamo Guna |
Ap | Sattva & Tamo Guna |
Tejas | Sattva & Rajo Guna |
Vayu | Rajo Guna |
Aakasha | Sattva Guna |
Subscribe to the newsletter.
पंचभूत
“भू सत्तायाम्” इस धातु में क्त्त प्रत्यय लगाने से भूत शब्द बनता है।
भू + क्त्तः= भूत।
भूत का अर्थ होता है जिसकी सत्ता हो, जिसका अस्तित्व हो, जो विद्यमान हो।
महर्षि चरक ने भूतों को ‘ससूक्ष्म’ तथा ‘इन्द्रियातीत’ अर्थात् इन्द्रियों से परे कहा है।
ये ‘भूत’ किसी के ‘कार्य’ नहीं होते है, अर्थात् किसी से उत्पन्न नहीं होते, बल्कि महाभूतों के उत्पादन का कारण होते है।
पंचभूतों से महाभूत उत्पन्न होते है, इसलिये महाभूत कार्य द्रव्य कहलाते है, किन्तु पंचभूत स्वयं किसी से उत्पन्न नहीं होते, अंतः ये नित्य है।
पंचभूत कारण द्रव्य है। भूत में जब महतत्व या स्थूलत्व आ जाता है, तब इसे ही महाभूत कहते है। संसार के समस्त द्रव्य पंचमहाभूतात्मक है।
महाभूतानि खं वायुरग्निरापः क्षितिस्तथा।
शब्दः स्पर्शश्च रूपंच रसो गन्धश्च तद्गुणाः॥
आकाशपवनदहनतोयभूमिषु यथासंख्यमेकोत्तरपरिवृद्धाः शब्दस्पर्शरूपरसगन्धाः।
आकाश, वायु, अग्नि, आप, और पृथ्वी ये पंचमहाभूत हैं। इनके क्रमशः गुण, शब्द, स्पर्श, रूप, एवं गन्ध है। ये भूत के नैसर्गिक गुण है।
पंचमहाभूत
पंचमहाभूत सिद्धांत भारतीय दर्शनों का एक सर्व दर्शन सम्मत सिद्धांत है। जो द्रव्यों के विभिन्न गुण, कर्म, स्वभाव एवं अवस्था आदि को देखकर सृष्टि विकास की स्वभाव सिद्ध परम्परा का सतत् निरीक्षण करता है। लोक अन
महाभूत की उत्पत्ति
- आचार्य सुश्रुत के अनुसार महाभूतों की उत्पत्ति सांख्य दर्शन के अनुसार है अर्थात्
अव्यक्त →महान →अहंकार → पंचतन्मात्रयें →पंचमहाभूत =
आकाश →वायु →अग्नि →जल →पृथ्वी की उत्पत्ति होती है। - चरक के अनुसार अव्यक्त →बुद्धि →अहंकार →पंचमहाभूत की उत्पत्ति होती है।
महाभूतों का परस्परानुप्रवेश से गुण
महाभूत | गुण |
---|---|
आकाश | शब्द |
वायु | शब्द और स्पर्श |
अग्नि | शब्द, स्पर्श और रूप |
जल | शब्द, स्पर्श, रूप और रस |
पृथ्वी | शब्द, स्पर्श, रूप, रस, एवं गन्ध |
दोष एवं महाभूत सम्बन्ध
महाभूत | दोष |
---|---|
वायु एवं आकाश | वात |
अग्नि | पित्त |
जल एवं पृथ्वी | कफ |
त्रिगुण एवं महाभूत का सम्बन्ध
महाभूत | त्रिगुण | भौतिक गुण | गुण संख्या | तन्मात्रा |
---|---|---|---|---|
आकाश | सत्व | अप्रतिघात | 6 | शब्द |
वायु | रज | चलत्व | 9 | स्पर्श |
अग्नि | सत्त्व एवं रज | उष्णत्व | 11 | रूप |
जल | सत्त्व और तम | द्रवत्व | 14 | रस |
पृथ्वी | तम | खरत्व | 14 | गंध |
आयुर्वेद में पंचमहाभूतों का महत्व
देह प्रकृति निर्माण एवं पंचमहाभूत-
देह प्रकृति के निर्माण में पंचमहाभूतों द्वारा भौतिक प्रकृति बनती है। वातादि दोष प्रकृतियों में भी तो तीनों वायु, तेज व जल महाभूत की प्रधानता होती है।
आचार्य चरक ने प्रकृति निर्माण में 4 कारणों का उल्लेख किया है।
- शुक्र शोणित प्रकृति
- काल गर्भाशय प्रकृति
- मातुराहार- विहार प्रकृति
- महाभूत विकार प्रकृति
क्योंकि सचेतन सृष्टि के निर्माण में पंचमहाभूतों के द्वारा उत्पन्न त्रिदोषों का विशेष योगदान होता है। महर्षि सुश्रुत ने दोष प्रकृति के स्थान पर भौतिक। प्रकृति का भी उल्लेख किया हैं, शरीर की सभी धातुओं का निर्माण पंचमहाभूतों से होता है।
षट् रस एवं पंचमहाभूत –
पृथ्वी व जल की बहुलता से मधुर रस, पृथ्वी व अग्नि की बहुलता से अम्ल रस, वायु व आकाश से तिक्त रस, वायु व पृथ्वी से कसाय, जैसे
रस | पंचमहाभूत |
---|---|
मधुर | पृथ्वी + जल |
अम्ल | पृथ्वी + अग्नि |
लवण | जल + अग्नि |
कटु | वायु + अग्नि |
तिक्त | वायु + आकाश |
कासाय | वायु + पृथ्वी |
भूताग्नि एवं पंचमहाभूत-
खाये गये आहार का जठराग्नि द्वारा संघात वेग होने से आहार में उपस्थित भूतगणो के परिपाक में वहाँ स्थित भूताग्नि का बड़ा महत्व है। जैसा की चरक ने कहा की भौम, आप्य, आग्नेय, वायेग्य, नाभस ये ५ प्रकार की अग्नि, आहार की अपने पार्थिव आदि ५ प्रकार के गुणों का पाक करती है।
त्रिदोष एवं पंचमहाभूत
दोष निर्माण में वायु, अग्नि, व जल अधिक कार्यकर होते हैं।
पंचमहाभूत एवं आयुर्वेद चिकित्सा
विरेचन द्रव्य में पृथ्वी, जल महाभूत व गुरू गुण प्रधान होता है।
वमन द्रव्य अग्नि व वायु महाभूत व लघु गुण प्रधान होता है।
शमन द्रव्य में आकाश महाभूत प्रधान ग्राही द्वारा वायु महाभूत प्रधान, दीपन द्रव्य अग्नि महाभूत प्रधान लेपन द्रव्य वायु वायु अग्नि महाभूत प्रधान, वृहण द्रव्य पृथ्वी जल महाभूत प्रधान।
शरीर की धातुए एवं अवयवों का संगठन
भूत विशेष की अधिकता व न्यूनता से धातुओं की रचना तथा गुण कर्म से भिन्नता पायी जाती है।
इंद्रियों की पंचभौतिकता
श्रोत | आकाश | शब्द |
स्पर्श | वायु | स्पर्श |
चक्षु | अग्नि | रूप |
रसन | जल | रस |
घ्राण | पृथ्वी | गंध |
आयुर्वेद में इन्द्रियों को पंचभौतिक कहा गया है। प्रत्येक इन्द्रिय विशेष में एक-एक महाभूत की अधिकता होती है। प्रत्येक इन्द्रिय एक ही नियत विषय को ग्रहण करती है
Subscribe to the newsletter.