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Ayurveda Darshana nirupana- Padarth Vigyan- BAMS- Sanskrit Gurukul

Hello learner, welcome to Sanskrit Gurukul, today we will start studying the second lesson of Padarth Vigyan, Ayurveda Darshana nirupana. In this lesson, we will study “Etymological derivation of the word “Darshana” and in further posts, we will learn about; “Classification and general introduction to schools of Indian Philosophy, with an emphasis on Nyaya, Vaisheshika, Sankhya, and Yoga; definition of padartha, Lakshana of padartha. Division and number of padarthas; bhava and abhava padartha; Charak’s opinion regarding these; introduction & description of Karana-padarthas mentioned by Charak etc.
नमस्कार शिक्षार्थी, संस्कृत गुरुकुल में आपका स्वागत है, आज हम पदार्थ विज्ञान के दूसरे पाठ, आयुर्वेद दर्शन निरुपण का अध्ययन शुरू करेंगे। इस पाठ में, हम “दर्शन” शब्द की व्युत्पत्ति संबंधी व्युत्पत्ति के बारे में अध्ययन करेंगे और आगे की पोस्टों में, हम “न्याय, वैशेषिक, सांख्य और योग पर जोर देने के साथ भारतीय दर्शनशास्त्र के स्कूलों का वर्गीकरण और सामान्य परिचय; पदार्थ की परिभाषा, पदार्थ का लक्षण। पदार्थों की संख्या और संख्या; भाव और अभव पदार्थ; इनके बारे में चरक की राय; चरक द्वारा वर्णित करण-पदार्थों का परिचय एवं वर्णन आदि के बारे में अध्ययन करेंगे।

Ayurveda Darshana nirupana, Bams, part-1, Padartha vijnana

Etymology of philosophy/दर्शन की व्युत्पत्ति:

The word Darshana is formed by adding the lute suffix (an) in the root of Drish, which means by which to be seen. In other words, which facilitates to visualization of the facts about the universe is known as Darshana.

दृश्यते अनेन इति दर्शनम्।

दृश धातु में ल्युट प्रत्यय ( अन्) लगाकर दर्शन शब्द बनता हैं। जिसका अर्थ है जिसके द्वारा देखा जाये।
या 
उस तत्वीक स्वरूप का ज्ञान प्राप्त किया जाये जो इस ऋष्टि का उत्पादक है। और जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो उसे दर्शन कहते है।
या
जीवन व जगत की चरम समस्याओं का समाधान करना या चिंन्तन जिसके द्वारा करते है वह दर्शन है।
या
दर्शन का मतलब तत्व शास्त्र का अध्ययन करना है।

दर्शन एक माध्यम है जिसके द्वारा इस जगत का वास्तविक ज्ञान किया जा सकता है। अर्थात् दर्शन यथार्थ ज्ञान साधक है, जो शास्त्र जीवन को यथार्थ रुप से देखने और समझने की वास्तविक दृष्टि प्रदान करता है, उसे दर्शन कहते है।
आयुर्वेद में ‘दृष्टा’ आत्मा को कहा है, क्योंकि वह ही साक्षी रूप में सब कार्य को देखता है। जैसे दृष्टा होते हुए भी बिना शीशे (Mirror/Reflecting surface) के होते हुए दृष्टा देख नहीं पाता, उसी प्रकार दर्शन के बिना पूर्ण रूप से खुद को देखना संभव नहीं है। योग का उद्देश्य ही यही है- अंत में आत्मा के दर्शन करना। जो शास्त्र जीवन को यथार्थ रूप से देखने और समझने की वास्तविक दृष्टि प्रदान करता है, उसे दर्शन कहते हैं। दर्शन शब्द का तात्पर्य ‘द्रष्टा’ से है जोकि स्वयं कभी नहीं देखा जाता अपितु स्वयं के अस्तित्व का अनुभव किया जा सकता है।

Broadness of Darshana/ दर्शन की व्यापकता

Drishti is the conscious element or ultimate reality which is prevalent everywhere. According to Maharishi Kanad, the microscopic part of matter which is indivisible or which cannot be broken into pieces is the atom, while there is an element of consciousness, while the consciousness is Purush or Paramatma or Maharishi matter micro microscopic part that Abhibajy according to Kanad or which pieces can be not that nuclear is the element of conscious while conscious guy or divine.

He is eternal, he is the cause of creation, in this way we see that the prevalence of philosophy in every substance is self-evident. The beginning of life, the end of life, and development are all subjects of philosophy. Pleasure, sorrow, attachment, dispassion, religion, dharma, knowledge, ignorance, getting all the work done is a matter of philosophy. The beginning of life, the end of life, and development are all subjects of Darshana. Happiness, sorrow, passion, peace, religion, evil, knowledge, ignorance, all of the vision to realize get work.

जहाँ तक दर्शन की व्यापकता का प्रश्न  है वह तो स्वयं सिद्ध है, वह तो स्वयं सिद्द है, दृष्ता ही चेतन तत्व है या परम तत्व है जो सर्वत्र व्याप्त है। महर्षि कनाद के अनुसार पदार्थ का सूक्ष्म अतिसूक्ष्म भाग जो कि आभिभाज्य हैं या जिसके टुकड़े ना किये जा सकते है  वह परमाणु है वहीं चेतन का तत्व है वहीं चेतन पुरुष या परमात्मा है। वही नित्य है वही सृष्टि का कारक है इस प्रकार हम देखते है कि प्रत्येक पदार्थ में दर्शन की व्यापकता स्वतः सिद्ध है। जीवन का आदि, जीवन का अंत एवं विकास सभी दर्शन के विषय है। सुख, दुःख, राग, वैराग्य, धर्म, अधर्म, ज्ञान, अज्ञान, सभी का साक्षात कार्य करा देना दर्शन का विषय है।

Origin of Darshana / emergence (दर्शन की उत्पत्ति/ उद्भव)

“Vedas are considered the source of Indian culture and civilization. Vedas are the pillars of religion, medicine, and philosophy. Darshana developed from the philosophy of the Upanishads; the last part of the Vedas. At that time there were three classic systems of spiritual realization in the Indian tradition:- Advaita (Non-duality), Dualism, and Tretvaism.

  • Advaita (Non-duality): It believes in the idea that Brahman alone is ultimately real. The phenomenal transient world is an illusory appearance (Maya) of Brahman, and the true self, atman, is identical with Brahman. Vedanta philosophy is based on monotheism.
  • Dvaita Vedanta (Dualism):  The Dvaita Vedanta School believes that God (supreme soul) and the individual souls (jīvātman) exist as independent realities, and these are distinct, being said that Vishnu (Narayana) is independent, and souls are dependent on him. It considers the two elements Prakriti and Purusha. Sankhya and Yoga’s philosophy is based on dualism.
  • Traitivadi: It believes in God, soul, and nature. The Darshana of Nyaya (न्याय), Vaisheshika (वैशेषिक), and Mimamsa (मीमांसा) is based on Trinitarianism.” – Source: wikipedia

वेदों को भारतीय संस्कृति और सभ्यता का मूल स्त्रोत माना गया है। वेद ही धर्म, चिकित्सा, एवं दर्शन के आधार स्तम्भ है। वेदों के अंतिम भाग उपनिषदों  के तत्वज्ञान से दर्शन का विकास हुआ है। उस समय तीन वाद प्रचलित थे:- एकत्ववाद, द्वैतवाद, तथा त्रेतवाद।

  • एकत्ववाद:- यह ब्रह्मा तथा वेदों को मानता है। अद्वैत वेदांत तथा वेदान्त दर्शन एकत्ववाद पर आधारित है।
  • द्वैतवाद: यह प्रकृति एवं पुरुष दो तत्वों को मानता है। सांख्य तथा योग दर्शन द्वैतवाद पर आधारित है।
  • त्रैतवादी: यह ईश्वर, जीवात्मा तथा प्रकृति को मानता है। न्याय, वैश्विक तथा मीमांसा दर्शन त्रैतवाद पर आधारित है।

Next post

The rest of the topics will be discussed in the coming posts, which will have an explanation about astika (orthodox) and nastika (non-orthodox) Darshana in detail.
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शेष विषय पर आगामी पोस्ट में चर्चा की जाएगी जिसमें अस्तिका (रूढ़िवादी) और नास्तिक (गैर-रूढ़िवादी) दर्शन के बारे में विस्तार से बताया जाएगा।
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