प्रिय शिक्षार्थी, संस्कृत गुरुकुल में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में हम गुर्वादि गुणों का अध्ययन करेंगे। यह विषय पदार्थ विज्ञान के नोट्स, बीएएमएस प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम का हिस्सा है। 10 गुर्वादि गुण हम पिछले पोस्ट मे अध्ययन कर चुके है। इसके पिछले अध्याय, द्रव्य निरुपन में, हम पहले ही निम्नलिखित विषयों को शामिल कर चुके हैं:
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Table of Contents
मृदु गुर्वादि गुण (जो कोमलता के लिए जिम्मेदार है)
व्याख्या | ‘यस्य द्रव्याणि श्लथने कर्माणि शक्तिः स मृदुः’ । (अ.हृ.सू. 1.18; हेमाद्रि) जिस गुण के कारण शिथिलता (कोमलता) आती है, उस गुण को मृदु गुण कहते हैं। |
महाभूत प्राधान्य | मृदु गुणयुक्त द्रव्यों में जल और आकाश महाभूत की प्रधानता होती है। |
गुणकर्म | दाहेत्यादि (दाहपाककरस्तीक्ष्णः स्रावणो, मृदुरन्यथा ) अन्यथेति अदाहपाककरोऽस्त्रावण इत्यर्थ । सु.सू.46/518 पर डल्हण टीका। अदाहकर – मृदु गुण दाह का नाश करता है। (जलन कम करता है) अपाककर– पाक का नाश करता है। अस्रावण – स्राव को नष्ट करता है। (बहाव कम करता है) मृदु – गुण शरीर भावों में मृदुता उत्पन्न करता है । |
चिकित्सीय महत्त्व | मृदु गुण मे श्लथन का कार्य होने से वह मांस धातु की कठिनता को नष्ट करता है। अदाहपाककर होने से व्रणों का रोपण करने में प्रयुक्त होता है। |
वर्जित | मेद-मांस शैथिल्यजन्य विकारों में |
उदाहरण | घृत, तैल, वसा, मज्जा, गोधूम आदि । |
कठिन
व्याख्या | दृढ़ीकरणे कठिण । – अ.हृ.सू.1/18 पर हेमाद्रिटीका जिस गुण के कारण शरीर में दृढ़ता उत्पन्न होती है, उस गुण को कठिन गुण कहते हैं |
महाभूत प्राधान्य | कठिन गुणयुक्त द्रव्यों में पृथ्वी महाभूत की प्रधानता होती है। च.सू. 26/11 |
गुणकर्म | दृढ़ीकरण – कठिन गुण शरीर को दृढ़ करता है। (शरीर को मजबूत करने के लिए) कठिन गुणात्मक द्रव्य शरीर का बलवर्धन करते हैं। कठिन गुण से मलों में शुष्कता उत्पन्न होती है। (मल में रूखापन पैदा करता है) कठिन द्रव्य वात की वृद्धि और कफ का क्षय करते हैं। (वात को बढ़ाता है और कफ को शांत करता है) |
चिकित्सीय महत्त्व | शरीर की शिथिलता को दूर करने के लिए रूक्ष एवं कठिन द्रव्यों का प्रयोग किया जा सकता है। मांसवृद्धि की अवस्था में कठिन द्रव्यों का प्रयोग किया जा सकता है। |
वर्जित | मलबद्धता की अवस्था में |
उदाहरण | प्रवाल, शंख, शुक्ति, मुक्ता आदि |
मृदु और कठिन गुण में अंतर
मृदु | कठिन | |
1 | यह कोमलता है | यह कठोरता है |
2 | यह आकाश और जलभूत प्रधानता के साथ है | यह पृथ्वीभूत प्रधानता के साथ है |
3 | यह ऊतक (tissue) या अंगों के विघटन (शैथिल्यता) का कारण बनता है | यह ऊतक (दृधिकरण) में अखंडता लाता है |
4 | यह स्नेहन, बृम्हण, कफ-वर्धन का कारण बनता है | यह रुख़शन, लंघन और कफ-क्षय का कारण बनता है |
5 | इससे मल-वृद्धि होती है | इससे मलक्षय होता है |
6 | एरेंडा, घृत, तैल आदि | प्रवाल, मुक्ता, शंख आदि |
विशद (स्वच्छ)
व्याख्या | क्षालने विशदः । – अ.ह.सू.1/18 पर हेमाद्रिटीका जिस गुण के कारण शरीर में निर्मलता या स्वच्छता उत्पन्न होती है, उस गुण को विशद गुण कहते हैं । |
महाभूत प्राधान्य | चरक संहिता के अनुसार विशद गुणयुक्त द्रव्यों में पृथ्वी, वायु और अग्नि महाभूत की प्रधानता होती है। – ·च.सू. |
गुणकर्म | विशदो विपरीतोऽस्मात् क्लेदाचूषण रोपणः । – सु.सू.46/517 क्लेदाचूषण – विशद गुण शरीर के क्लेद को दूर कर शरीर को निर्मल बनाता है। रोपण – विशद गुण व्रण के रोपण में सहायक है। |
चिकित्सीय महत्त्व | धातुगत स्नेह या द्रव को क्लेद कहा गया है। प्रमेह आदि व्याधियाँ क्लेदजन्य होती है। इस क्लेद को नष्ट करने के लिए विशद गुण के द्रव्यों का प्रयोग किया जा सकता है। |
वर्जित | वात वृद्धि की अवस्था में । |
उदाहरण | मुद्ग, मद्य, निम्ब, तक्रपिण्ड आदि । |
पिच्छिल ( चिकनापन)
व्याख्या | लेपने पिच्छिलः। -अ.हृ.सू.1/18 पर हेमाद्रिटीका जिस गुण के कारण शरीर में लेपन कर्म होता है, उस गुण को पिच्छिल गुण कहते हैं। |
महाभूत प्राधान्य | पिच्छिल गुणयुक्त द्रव्यों में जल महाभूत की प्रधानता होती है। च.सू. 26/11 |
गुणकर्म | पिच्छिलो जीवनो बल्यः सन्धानः श्लेष्मलो गुरूः – सु.सू.46/517 जीवन – पिच्छिल गुण आयुष्य को नियत रूप से उसकी मर्यादा में बाँधे रखता है। बल्य – पिच्छिल गुण बल को बढ़ाता है। (ताकत बढ़ाता है) सन्धान: अस्थिभग्न को जोड़ता है। (यह फ्रैक्चर को ठीक करता है) श्लेष्मलो – कफ को बढ़ाता है। (कफ बढ़ाता है) गुरू – गौरवता उत्पन्न करता है। (भारीपन बढ़ाता है) |
चिकित्सीय महत्त्व | सन्धान कर्म होने से पिच्छिल द्रव्यों का प्रयोग भग्न सन्धान में किया जा सकता है कार्य की अवस्था में धातुवर्धनार्थ पिच्छिल द्रव्यों का प्रयोग किया जा सकता है। |
वर्जित | अग्निमांद्य की अवस्था में। |
उदाहरण | ईसबगोल, गुग्गुलु, मूसली आदि । |
पिच्छिल और विशाद गुण में अंतर
पिशचिला | विशाद | |
1 | यह स्पष्टता है | यह चिकनापन है |
2 | यह लंघन (हल्कापन) का कारण बनता है | यह गुरुत्व (भारीपन) का कारण बनता है |
3 | वायु और तेजो भूत से निर्मित | जल भूत से निर्मित |
4 | वरण-रोपना का कारण बनता है | संधान, स्नेहन, बृह्म्हण आदि के कारण होते हैं। |
5 | क्षमा इसकी मुख्य क्रिया है | लेपन इसकी मुख्य क्रिया है |
6 | उदा. मद्य, क्षर, निम्बा | दुग्ध उत्पाद, गुडा इक्षु-विकार |
श्लक्ष्ण (चिकनाई)
व्याख्या | रोपणे श्लक्ष्णः । – अ.हृ.सू.1/18 पर हेमाद्रिटी जिस गुण के कारण शरीर में रोपण का कार्य होता है, उस गुण को श्लक्ष्ण गुण कहते हैं । |
महाभूत प्राधान्य | चरक संहिता के अनुसार श्लक्ष्ण गुणयुक्त द्रव्यों में अग्नि महाभूत की प्रधानता होती है। च.सू.26/11 |
गुणकर्म | श्लक्ष्णः पिच्छिलवज्ज्ञेयः । – सु.सू.46/521 ‘श्लक्ष्णः स्नेहं विनाऽपि स्यात् कठिनोऽपि हि चिक्कणः’ । (भावप्रकाश) श्लक्ष्ण गुण को पिच्छिल गुण के समान ही जानना चाहिए। श्लक्ष्ण गुण में भी पिच्छिल गुण के समान निम्न गुण है। जीवन – श्लक्ष्ण गुण आयुष्य को नियत रूप से मर्यादा में बाँधे रखता है। बल्य – श्लक्ष्ण गुण बल को बढ़ाता है। ताकत बढ़ाता है) सन्धान – अस्थिभग्न को जोड़ता है । ( यह फ्रैक्चर को ठीक करता है) श्लेष्मलो – कफ को बढ़ाता है। (कफ बढ़ाता है) गुरू – गौरवता उत्पन्न करता है। (भारीपन बढ़ाता है) पिच्छिल गुणात्मक द्रव्य स्नेहयुक्त होते हैं, किन्तु श्लक्ष्ण गुणा द्रव्य स्नेह रहित होते हैं। श्लक्ष्ण द्रव्य कठिन होते हैं और चिकनापन होता है। |
चिकित्सीय महत्त्व | व्रण रोपणार्थ श्लक्ष्ण द्रव्यों का प्रयोग होता है। अस्थिसन्धानार्थ श्लक्ष्ण गुणात्मक द्रव्यों का भी प्रयोग होता है। |
वर्जित | अग्निमांद्य की अवस्था में |
उदाहरण | प्रवालपिष्टी, मुक्ता, यष्टिमधु, अभ्रक |
खर गुर्वादि गुण (खुरदरापन )
व्याख्या | लेखने खरः । – अ.हृ.सू.1/18 पर हेमाद्रिटीका जिस गुण के कारण शरीर में लेखन का कार्य होता है, उस गुण को खर गुण कहते हैं। |
महाभूत प्राधान्य | चरक संहिता के अनुसार खर गुणयुक्त द्रव्यों में पृथ्वी और वायु महाभूत की प्रधानता होती है। च.सू. 26/11 |
गुणकर्म | खर गुण शरीर का लेखन करता है। धातुओं का क्षय करता है। मलमूत्र का शोषण करता है । शरीर में कर्कशता उत्पन्न करता है। यह वात दोष की वृद्धि करता है और कफ का क्षय करता है। |
चिकित्सीय महत्त्व | विकृत धातुवृद्धि में जहाँ लेखन का कार्य अपेक्षित है, वहाँ खर गुणात्मक द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है |
वर्जित | वात वृद्धि की अवस्था में | |
उदाहरण | कमलदण्ड, यव, करंज आदि । |
श्लक्ष्ण और खर गुण में अंतर
श्लक्ष्ण | खर | |
1 | यह चिकनाई का कारण बनता है | यह खुरदुरेपन का कारण बनता है |
2 | यह आकाश और अग्निभूत प्रधान है | यह वायु और पृथ्वी भूत प्रधान है |
3 | यह पिच्छिला की तरह है | यह विशाद की तरह है |
4 | बल्य, जीवनिया और बृह्म्हण | धातु-क्षयकार (दुर्बलता) |
5 | कफ-वर्धक | कफ-लेखन |
6 | दोष-स्तम्भन | दोष-शोषण |
7 | रोपन मुख्य क्रिया है | लेखन मुख्य क्रिया है |
8 | उदा. मुक्ता, प्रवाल | उदा. – करंज फल, कमलदंड |
सूक्ष्म
व्याख्या | ‘यस्य द्रव्यस्य विवरणे शक्तिः सः सूक्ष्मः’ । (अ.सू. 1.18 ) हेमाद्रिटीका वह गुण जो सूक्ष्म स्त्रोतों (नाड़ियों) में प्रवेश करता है और उसके स्त्रोतोमुख को खोलता है उस गुण को सूक्ष्म गुण कहते हैं। |
महाभूत प्राधान्य | सूक्ष्म गुणयुक्त द्रव्यों में अग्नि, वायु और आकाश महाभूत की प्रधानता होती है। च.सू. 26/11 |
गुणकर्म | सूक्ष्मस्तु सौक्ष्म्यात् सूक्ष्मेषु स्रोतः स्वनुसरः स्मृतः सु.सू.46/524 सूक्ष्म गुणयुक्त द्रव्य अपनी सूक्ष्मता से शरीर के सूक्ष्म स्रोतों में प्रवेश कर सकते है । सूक्ष्म गुण आशुकार्य करने वाला होता है। सूक्ष्म गुणात्मक द्रव्य लघुपाकी होता है। |
चिकित्सीय महत्त्व | सूक्ष्म गुणात्मक द्रव्य सूक्ष्म स्रोतोगामी होने से आशुगती से कार्य करता है। |
उदाहरण | मद्य, पारद, लवण, गुग्गुलु आदि । |
स्थूल
व्याख्या | लवण संवरणे स्थूलः । – अ.ह.सू.1/18 पर हेमाद्रिटीका जिस गुण के कारण शरीर में संवरण (स्रोतसों का संकुचन) का कार्य होता है, उस गुण को स्थूल गुण कहते हैं। |
महाभूत प्राधान्य | चरक संहिता के अनुसार स्थूल गुणयुक्त द्रव्यों में पृथ्वी महाभूत की प्रधानता होती है। च.सू. 26/11 |
गुणकर्म | स्थूल गुण शरीर में स्थौल्य की उत्पत्ति करता है। स्थूल गुण स्रोतावरोध का कार्य करता है । स्थूल गुण स्रोतसों का संकुचन करता है। |
चिकित्सीय महत्त्व | कृश व्यक्ति को स्थूल बनाने के लिए स्थूल द्रव्यों का प्रयोग किया जा सकता है। अत्यग्नि की अवस्था में स्थूल गुणात्मक द्रव्यों का प्रयोग किया जा सकता है। |
उदाहरण | श्रीखंड, उड़द, माहिष दुग्ध आदि । |
सूक्ष्म और स्थूल गुण में अंतर
सुषम | स्थुल | |
1 | यह सूक्ष्मता है | यह स्थूलता है |
2 | यह सरलता से सूक्ष्म स्त्रोतों में प्रवेश कर उन्हें खोल देता है | यह श्रोतों को बाधित करता है |
3 | यह श्रोतो-शोधक है | यह श्रोतो-रोधक है |
4 | इससे मल साफ होती है और सेहत बनी रहती है | यह शरीर के भारीपन (स्थौल्य) का कारण बनता है |
5 | विवरण मुख्य क्रिया है | संवरण मुख्य क्रिया है |
6 | यह अग्नि, वायु और आकाशभूत प्रबलता से निर्मित है | यह पृथ्वी और जलभूत प्रबलता से बना है |
7 | उदा. मद्य, कस्तूरी | उदा. दही, मिठाई |
सान्द्र (ठोसपन)
व्याख्या | प्रसादने सान्द्र। – अ.हृ.सू.1/18 पर हेमाद्रिटीका स्थुला और स्थिर की संयुक्त गुणवत्ता को सान्द्र के रूप में जाना जाता है। तथा जिस गुण के कारण शरीर में प्रसादन का कार्य होता है, उस गुण को सान्द्र गुण कहते हैं। |
महाभूत प्राधान्य | तत्र सान्द्रं पार्थिवम् । सु.सू.41/3 सान्द्र गुणयुक्त द्रव्यों में पृथ्वी महाभूत की प्रधानता होती है। |
गुणकर्म | सान्द्रः स्थूलः स्याद् बन्धकारकः । सु.सू.46/520 स्थूल: – सान्द्र गुण शरीर को स्थूल बनाता है। |
चिकित्सीय महत्त्व | बन्धकारकः – सान्द्र गुण शरीर के अवयवों का बन्धन कार है। आचार्य डल्हण ने बन्धकारक को उपचयकारक कहा है। कृश व्यक्ति का उपचय करने के लिए सान्द्र द्रव्यों प्रयोग किया जा सकता है। अपतर्पणजन्य विकारों में सन्तर्पणार्थ सान्द्र द्रव्यों का प्रयोग किया जा सकता है। |
उदाहरण | मलाई, दही, मक्खन आदि । |
द्रव ( पतलापन)
व्याख्या | विलोडने द्रव । – अ.हृ.सू.1/18 पर हेमाद्रिटीका जिस गुण के कारण शरीर में विलोडन (व्याप्त करना या फैलाना) का कार्य होता है, उस गुण को द्रव गुण कहते हैं। |
महाभूत प्राधान्य | चरक संहिता के अनुसार द्रव गुणात्मक द्रव्यों में जल महाभूत की प्रधानता होती है। च.सू. 26/11 द्रव गुणयुक्त द्रव्यों में पृथ्वी, जल और अग्नि महाभूत प्रधानता होती है। द्रवत्व के दो भेद होते हैं – सांसिद्धिक और नैमित्तिक । सांसिद्धिक द्रवत्व – जल महाभृत में । नैमित्तिक द्रवत्व – अग्नि और पृथ्वी महाभूत में। |
गुणकर्म | द्रवः प्रक्लेदनः । – सु.सू.46/520 प्रक्लेदन – द्रव गुण क्लेद उत्पत्ति (आर्द्रता) का कार्य करता है। |
उदाहरण | जल, दूध, दही, इक्षुरस आदि । |
सान्द्र और द्रव गुण के बीच अंतर
सान्द्र | द्रव | |
1 | यह दृढ़ता है | यह तरलता है |
2 | यह शुष्कत्व का कारण बनता है | यह आर्द्रता का कारण बनता है |
3 | पृथ्वी और जलभूत प्रबलता | जलभूत प्रधानता |
4 | शुष्क द्रव्य में मौजूद गुण | आप्य द्रव्य में मौजूद गुण |
5 | यह श्रोतरोध का कारण बनता है | इससे स्रोतों में क्लेदान या अतिप्रवृत्ति होती है |
6 | इसमें स्थूल, स्थिर, शुष्क गुण विद्यमान होते हैं | इसमें द्रव या जल गुण विद्यमान होते हैं |
7 | जैसे: पनीर आदि। | उदा. पानी, दूध आदि |
विशेष
सुश्रुत संहिता के अनुसार शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष, मृदु, तीक्ष्ण, पिच्छिल और विशद ये आठ वीर्य संज्ञक गुण हैं।
- तीक्ष्ण और उष्ण गुण आग्नेय हैं।
- शीत और पिच्छिल गुण जल भूयिष्ट हैं।
- स्निग्ध गुण में पृथ्वी और जल की अधिकता होती है।
- मृदु गुण में जल और आकाश की अधिकता होती है।
- रूक्ष में गुण में वायु की अधिकता होती है।
- विशद गुण में पृथ्वी और वायु तत्त्व की अधिकता होती है।
- उष्ण और स्निग्ध गुण वातनाशक होते हैं।
- शीत, मृदु और पिच्छिल गुण पित्तशामक होते हैं।
- तीक्ष्ण, रूक्ष और विशद गुण कफ का शमन करते हैं।
- गुरू गुण वात और पित्त का शमन करता है।
- लघु गुण कफ का शमन करता है।
- मृदु, शीत और उष्ण गुण स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य है।
- पिच्छिल और विशद गुण चक्षु और स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा जाने जाते हैं।
- स्निग्ध और रूक्ष गुण चक्षुरेन्द्रिय द्वारा जाने जाते हैं।
- तीक्ष्ण गुण मुख में दु:ख के उत्पन्न करने से जाना जाता है।
- मल और मूत्र के त्याग से और कफ के द्वारा उत्क्लेश करने से गुरूपाक को जाना जाता है।
- मल और मूत्र के विबन्ध से और वात के प्रकुपित होने से लघुविपाक को जाना जाता है।
गुर्वादि गुण का महत्व
गुरुवादी गुण को शरीर गुण या कर्मण्य गुण के रूप में जाना जाता है क्योंकि वे आहार, औषाध और शरीर के ऊतकों में पाए जाते हैं। रोगग्रस्त अवस्था में शरीर में गुणात्मक परिवर्तन होते हैं। उन्हें सामान्य-विशेष-सिद्धांत के आधार पर उचित आहार और औषाध प्रदान करके संतुलित किया जाता है।
उदाहरण –
ज्वर में | शीतल द्रव्य |
अजीर्ण में (बदहज़मी) | उष्णा, तीक्ष्ण, लघु द्रव्य |
कमजोर रोगी में | गुरु, स्निग्धा, पिच्छिला द्रव्य |
स्थूल रोगी में | लघु, रुक्ष, शुष्क द्रव्य |
शीतल ऋतु में | उष्ण-परिचार्य |
उष्ण ऋतु में | शीतल-परिचार्य |
तैलीय शरीर | रुक्ष द्रव्य |
खुरदरा शरीर | स्निग्ध द्रव्य |
गुर्वादि गुणों का संक्षिप्त विवरण/ सारांश
गुरु | जो शरीर मे गुरुता/ भारीपन उत्पन्न करे। जैसे – उड़द की दाल । |
लघुः | जो शरीर में जो हल्कापन उत्पन्न करे। जैसे – मूंग की दाल। |
मंद | जो गुण शरीर में जाकर दोषों का शमन करे। जैसे – गिलोय |
तीक्ष्ण | जो गुण शरीर में जाकर दोषो को शरीर से बाहर निकाल है ।जैसे- निशोध |
शीत | जो शरीर में ठण्डक उत्पन्न करे और उष्णता कम करें, दाहकाशमन ।जैसे- चंदन |
उष्ण | जो शरीर में उष्णता उत्पन्न करे और दाह को बढ़ाये। जैसे- अदरक, काली मिर्च . |
स्निग्ध | जो शरीर में आर्द्रता उत्पन्न करे और चिपक जायें ।जैसे-मखन, मलाई, गुण, गन्ने का रस। |
रुक्ष | जो शरीर में रूक्षता और शुष्कता उत्पन्न करे। जैसे-जौ |
श्लक्षण | जो शरीर में रोपण (healing) करने का कार्य करे। जैसे- दूध। |
खर | जो शरीर में लेखन. उत्पन्न करे, स्पर्श में कर्कश। जैसे- पारिजात पत्र |
सांद्र | जिस गुण में शरीर में स्थूलता उत्पन्न करता है। जैसे- मखन, मलाई |
द्रव | जिसमें आद्र गीला विलिन करने की शक्ति हो। जैसे- दूध, जल |
मृदु | अर्थात जो शरीर में कोमलता और स्थिरता उत्पन्न करे। जैसे- बादाम, एरण्ड तेल । |
कठिन | जो शरीर में कठिनता और दृढ़ता उत्तपन्न करे। जैसे→ प्रवाल, मुक्ता |
स्थिर | जो धातुओं को धारण करे और स्थिरता उत्पन्न करे। जैसे – जातिफल |
सर | जो शरीर में जाकर वायु और मल को बाहर निकलने के लिये प्रेरित करे। जैसे- अमलतास |
सूक्ष्म | जो छोटी से छोटी जगह और स्त्रोतों में चला जायें और स्त्रोतों को खुला रखे। जैसे – मद्य |
स्थूल | जो गुण स्त्रोतों को अवरुध करे। जैसे- दही। |
विशद | जिसमे पिच्छिलता को नष्ट करने की शक्ति हो। जैसे – नीम, क्षार । |
पिच्छिल | जो शरीर मे लेपन करे और गुरुता उत्पन्न करे। जैसे – ईसबगोल |
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With this, we have finished one more topic of padarth Vigyan notes. If you have any questions or suggestions please feel free to comment below.
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